माहेश्वरी समाज ने सातुड़ी तीज पर्व मनाया चंद्र दर्शन कर दिया अर्घ्य, नीमड़ी की पूजा की
मनासा- माहेश्वरी समाज द्वारा सातुड़ी तीज का पर्व उत्साह व उमंग के साथ मनाया। पश्चिमांचल महिला उपाध्यक्ष स्नेहलता अनिल मुंदड़ा ने बताया कि सातुड़ी तीज को माहेश्वरी समाज में ऐतिहासिक पर्व के रूप में मनाया जाता है। कहते हैं कि यह पर्व की महत्ता लगभग 5000 वर्ष पूर्व महाभारत कालीन माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति से है। मान्यता है कि 72 सैनिक उमराव तपस्वियों के श्राप से सभी निष्प्राण (पाषाण) के हो गए थे। इन उमराव की पत्नियों ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव के अष्टाक्षर मंत्र ओम नमः महेश्वराय नमः का जाप किया। जिससे प्रसन्न होकर भगवान महेश माता पार्वती के साथ आकर इन पाषाण की मूर्ति को श्राप मुक्त कर दिया और उन्हें वैश्य धर्म प्रदान किया। माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति के लिए 12 वर्षों की कठोर तपस्या आज के दिन यानी तीज पर समाप्त हुई और भगवान शिव व माता पार्वती ने इन्हें दर्शन दिए। भूख से व्याकुल तपस्वियों
को भगवान महेश ने सत्तू खिलाकर उनकी भूख शांत की। तभी से माहेश्वरी समाज द्वारा सातुड़ी तीज पर महिलाएं सिके हुए चने का सत्तू, चावल एवं गेहूं के सत्तू के लड्डू बनाकर इस दिन उपवास रखकर शाम को नीमड़ी की पूजा और चंद्र दर्शन कर आर्ध्य
देती है एवं अपना उपवास कच्चे दूध सत्तू गई ककड़ी व नींबू से तोड़ती है। आज के दिन समाज में कई किलो सत्तू की सामग्री बनती हैं। इसलिए इसे सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है।
पुजा में श्रीमती प्रेमा मुंदड़ा, आरती सारडा,बंटी पलोड़, डिंपल झवर, मौसम मूंगड,अनिता कास्ट, अन्नू जी झवर, सीमा बाहेती आदि महिलाओं ने भी साथ साथ पूजन किया
उपरोक्त जानकारी श्रीमती ऋतु समदानी ने दी
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