तप जीवन में श्रेष्ठ अनुष्ठान है इससे दान, शील, तप व भावना चारो निमीत सध जाते है।

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तप जीवन में श्रेष्ठ अनुष्ठान है इससे दान, शील, तप व भावना चारो निमीत सध जाते है।

जावद।आचार्य रामेश की शिष्या महासति स्तुति श्री जी मा सा. ने. उक्त विचार श्राविका स्वाति धर्मपत्नि कमल पटवा के मास खमण की तपस्या के अनुमोदन में आयोजित धर्म सभा मे व्यक्त किये। साधुमार्गी जैन संघ जावद के वरिष्ठ श्रावक सुन्दरलाल पटवा की पुत्रवधु श्रीमति स्वाति कमल पटवा ने 30 उपवास (मास खमण) तपस्या की।
इस अवसर पर मा सा कुसुमकांता श्री ने कहा कि प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव व अंतिम तीर्थकर भगवान महावीर ने भी तपस्या का सहारा लिया। इन्द्रियों के रसास्वाद से बचने के लिये तप ही एकमात्र सहारा है। महासतिश्री स्तुति श्री ने फरमाया कि तप से मन एकाग्र होता है व मन में शांति की अवस्था बनती है। तप से छः काया जीवो की रक्षा होकर अंहिसा व्रत की साधना होती है। मन उपवास के निमित वेदना समभाव ने सहता है। कर्मों के बोझ से आत्मा हल्की होती है। शरीर से मोह छुटता है व आत्मभाव सुदढ होता है। इस पांचवे आरे मे जीव को थोडी तपस्या से भी कर्मो की निर्जरा का बड़ा लाभ होता है। आत्मा मोक्ष की ओर बढती है। आचार्य श्री हुक्मीचन्द स्मृति भवन में नियमित प्रवचन के दौरान तपस्या के अनुमादनार्थ विशेष आयोजन रखा गया। साधुमागी जैन संघ मध्यप्रदेश के अध्यक्ष अजीत चेलावत स्थानीय संघ के मंत्री श्री रणजीत चोपडा सहित अनेक श्रावक श्राविकाएं मौजूद रहे।

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