परमात्मा का अभिषेक करने से मनुष्य की आत्मा का कर्ममल दूर होता है।

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परमात्मा का अभिषेक करने से मनुष्य की आत्मा का कर्ममल दूर होता है।

वर्ष भर में 11 कर्तव्यों का होना चाहिए पालन

सिंगोली। श्री सिंगोली मंडन पार्श्वनाथ दादा की छत्र छाया में जैन श्वेतांबर श्री संघ में पर्युषण पर्व की आराधना हर्सोल्लास से चल रही है। जहाँ आराधना करवाने के लिए वर्धमान स्वाध्याय मंडल के अंशुल मेहता, अर्पित जैन, अर्हम कांठेड ने दूसरे दिन प्रवचन में 11 वार्षिक कर्तव्यों के बारे में बताया। जहां उन्होंने समझाते हुए बताया की
प्रथम कर्तव्य के बारे में बताते हुए कहा कि मानुभवो को संघ पूजा करनी चाहिए संघ अर्थात श्रावक-श्राविका साधु और साध्वी होता है तीर्थंकर परमात्मा अर्थात भगवान को भी यह संघ पूजनीय होता है। ऐसे संघ की हमें भी सम्मान पूर्वक पूजा करनी चाहिए, दूसरे कर्तव्य के बारे में बताते हुए कहा कि साधर्मिक भक्ति मनुष्य को अवश्य करनी चाहिए आर्थिक रुप से कमजोर साधर्मिक को सहायता करनी चाहिए। मजबूर को मजबूत बनाना चाहिए। तीसरे कर्तव्य यात्रा त्रिक के ऊपर बताते हुए कहा की 8 दिन महोत्सव रथयात्रा, वरघोड़ा तीर्थयात्रा साल भर के अंदर महानुभावों को अवश्य करनी चाहिए। चोथे कर्तव्य के विषय में बताते हुए बताया कि परमात्मा का स्नात्र महोत्सव बनाना चाहिए। परमात्मा का अभिषेक करने से मनुष्य की आत्मा का कर्ममल दूर होता है मनुष्य देवों से भी भाव में आगे है। पाचवें कर्तव्य के बारे में बताते हुए बताया कि देव द्रव्य की बढ़ोतरी करनी चाहिए जो मनुष्य देव द्रव्य की रक्षा करता है वह आने वाले समय में तीर्थंकर बनता है।छट्टे कर्तव्य पर विवेचना करते हुए बताएं कि भगवान की पूजा से ही जीव आत्मा निर्मलता को प्राप्त कर सकता है ऐसी महापूजा साल भर में कम से कम एक बार अवश्य करनी चाहिए, सातवें कर्तव्य के रूप में धर्ममय रात्रि जागरण का विधान बताया गया संपूर्ण रात जिन भक्ति गुरु भक्ति और तत्व चिंतन द्वारा जाग्रत अवस्था में बितानी,आठवें कर्तव्य में श्रुत की पूजा का महत्व बताते हुए बताया कि ज्ञान पढ़ना पढ़ाना तथा पढ़ने वालों को सहायता करनी चाहिए। साल भर में 1 एक दिन श्रुत भक्ति की बात बताई गई नौवें कर्तव्य में उद्यापन के विषय में बताते हुए कहा कि तप अनुष्ठान आदि करने के पश्चात यथाशक्ति अनुसार उजमाणी करनी चाहिए, दसवे कर्तव्य में तीर्थ प्रभावना करने हेतु उपाय बताए गए रथयात्रा वरघोड़ा प्रवचन प्रभावना इत्यादि उसके प्रकार हैं अंतिम 11 वे कर्तव्य के बारे में बताते हुए आलोचना शुद्धि के बारे में बताते हुए कहा कि आत्मा पर लगे हुए कर्म मलो को दूर करने हेतु वर्ष भर में जो जो पाप किए उन पापों को गुरु के आगे प्रगट कराना चाहिए, जिस से आत्मा की शुद्धि होती है इन 11 कर्तव्यों का पालन वर्ष भर के अंदर हर श्रावक-श्राविकाओं को करना चाहिए।

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