दया सबसे बड़ा धर्म-सौम्ययशा श्रीजी
मनासा। महापुरुषों ने दया को धर्म का मूल कहा है तथा अभिमान को पाप का मूल माना है। प्राणी मात्र के प्रति दया का भाव रखना ही सबसे बड़ा धर्म है। हिंसात्मक भाव का दमन ही दया है। दया धर्म को प्रत्येक सम्प्रदाय ने बड़ा महत्व दिया है। किसी की तकलीफ़ को देखकर हमारा ह्रदय द्रवित हो जाय,उसके दुःख को कम करने का भाव जाग्रत हो जाय वास्तव में यही सच्ची दया है। दया ही इंसान को इंसान बनाती है। दया विहीन मानव दानव कहलाता है।
यह बात स्थानीय जैन उपाश्रय में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्य सौम्ययशा श्रीजी मसा.ने कही। आपने कहा कि पर्वाधिराज पर्व पर्युषण आ रहा है। आचार शुद्धि के लिए आया है पर्युषण, हमें अपने पापों को याद करना है,आचार में चुस्तता लानी है। बड़ा दुःखद है कि हमे अपने पद का मद तो है पर धर्म का नही…? जिसके जीवन के अंदर त्याग-तप,धर्म-साधना बसी हो वही जैनी है। जैन होने के नाते हमने कभी चिंतन किया कि हमे क्या नही खाना चाहिए,अभ्यक्ष और अनन्तकाय भोज्य पदार्थ हमें नरक की ओर धकेल रहे हैं।
परम् पूज्य अर्पिता श्रीजी मसा. ने बताया कि पर्वराज पर्युषण में हमें संकल्प लेना है कि इन आठ दिनों में हमारा कोई भी कृत्य ऐसा नही होना चाहिए जिससे हमारा धर्म लज्जित हो। कोई बेटा यदि अपने पिता की इच्छा के विरूध्द काम करे तो वो पुत्र कभी सुपुत्र नही कहा जा सकता तो फिर हम जैन धर्म के प्रतिकूल व्यवहार करके जैन होने का दम्भ भरें ये सर्वथा अनुचित है।इस अवसर पर अनेक धर्म प्रेमी श्रद्धालु उपस्थित थे।
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