दिवंगत शिक्षक पिता की आत्मा की शांति एवं मोक्ष हेतु गौ सेवा, दान एवं विद्यालय छात्रों को अध्यन सामग्री भेंट कर समाज एंव क्षेत्र में आदर्श स्थापित किया

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दिवंगत शिक्षक पिता की आत्मा की शांति एवं मोक्ष हेतु गौ सेवा, दान एवं विद्यालय छात्रों को अध्यन सामग्री भेंट कर समाज एंव क्षेत्र में आदर्श स्थापित किया

 मंदसौर – सीतामऊ तहसील के ग्राम मुवाला के प्राथमिक विद्यालय में सेवारत अध्यापक व पूर्व प्रधानाचार्य श्री प्रहलाद सिंह जी झाला की मृत्यु उपरान्त उनके तेरहवी कार्यक्रम को उनके दोनों पुत्रों ने, पिता के संस्कारों और शिक्षा के अनुरुप् ही कर समाज में एक अनुठी मिसाल पेश करी हे । दिवंगत श्री झाला के पुत्रों ने पिता के तेरहवी कार्यक्रम पर गौ सेवा, दान तथा पिता श्री के सेवारत विद्यालय के छात्रों को भोजन प्रसादी एवं पाठ्य सामग्री वितरण कर, अपने पिता की आत्मा शांति एवं मोक्ष क्रिया कार्यक्रम को सम्पन्न किया l इस विशेष श्रद्धांजलि एवं शौक कार्यक्रम के अंतर्गत दिवंगत श्री झाला के बड़े बेटे श्री युवराज सिंह झाला ने अपने पिता कि उपलब्धियों और उनके सम्पूर्ण जीवन पर प्रकाश डालते हुए, सभी छात्रों को संबोधित किया l श्री युवराज ने बताया कि, पिता जी ने बिना किसी प्रशिक्षण के प्रदेश कि कुश्ती एंव कब्बडी जैसे खेलों का प्रदेश स्तरीय प्रतिनिधित्व किया, खेल व् शिक्षा दोनों के प्रति उनका समर्पण बहुत गहरा रहा, पिता जी कि हार्दिक मंशा रहती थी, कि, उनके विद्यालय का हर छात्र बड़े पद पर कार्य करें, और इसके लिए वे छात्रों कि हर संभव सहायता करने के भाव से सदेव छात्रों के साथ तत्पर रहते थे l लेकिन काल के गाल में समा जाने से आज वे हम सभी के बीच नही रहे l लेकिन पिता श्री कि इस अधूरी मंशा कि पूर्ति हेतु में और मेरा परिवार आप सभी छात्रों के साथ और सहयोग के लिए संकल्पित हैl इस विद्यालय के विद्यार्थियों को अगले 15 वर्षों में प्रशासनिक सेवाओं तक पहुँचाने के लिए झाला परिवार हर संभव प्रयास करेगा! इसके साथ ही दिवंगत श्री झाला के छोटे बेटे श्री राजराजेश्वर झाला ने परिवार की और से मृत्यु भोज को कुप्रथा बताते हुए, समस्त समाज और समाज जन से इस पर प्रतिबंध के लिए आग्रह किया, उनके छोटे बेटे श्रीराजराजेश्वर सिंह ने कहा कि महाभारत में दुर्योधन द्वारा श्री कृष्ण से भोजन करने के आग्रह पर कृष्ण ने कहा कि ‘‘ सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः अर्थात जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए। वहीं सामाजिक दृष्टिकोण से यह उचित नहीं है। समाज के हर वर्ग को ऐसी कुप्रथा के प्रतिबंध हेतु शुरुवात स्वयं से करना चाहिए, ताकि अन्य भी इससे प्रेरित होकर, ऐसी कुप्रथाओ पर अंकुश लगा सके, मेरे पिता श्री झाला ऐसी अनेक कुप्रथाओं के प्रतिबंध को लेकर सदेव समाज से आग्रह के साथ सभी को समय ~ समय पर जागरूक करते रहे l आज उन्हीं की शिक्षा और संस्कार का मान रखते हुए, हमारे परिवार ने मृत्यु भोज का सामूहिक बहिष्कार किया l
विद्यालय परिसर पर आयोजित शौक सभा कार्यक्रम में गाँव के सभी वरिष्ठजनों, विद्यार्थीयों और शिक्षकों ने स्व. श्री झाला को श्रद्धांजलि अर्पित कर, उनके द्वारा किए गए अनेक कार्यों को स्मरण किया । अंत में विद्यालय वर्तमान प्राचार्य द्वारा दिवंगत अध्यापक श्री झाला सा. के योगदान को सदैव हृदय में स्थान के साथ, छात्रों के प्रति उनकी भावनाओं और संकल्प को पूरा करने के लिए विद्यालय परिवार एवं ग्रामवासी प्रतिबद्ध हैं । इस अवसर पर
झाला परिवार के सदस्यों में
श्री नारायण सिंह झाला भाजपा जिला उपाध्यक्ष, लक्ष्मण सिंह झाला, पार्थराज सिंह झाला, कुलदीप सिंह झाला एवं बंधुजन आदि उपस्थित रहें l

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