श्रीफल मांगलिक द्रव्यों का प्रमुख आधार-सौम्ययशा श्रीजी
“श्रीफल का महत्व” विषय पर विशेष व्याख्यान
मनासा। नारियल अथवा श्रीफल का हमारी संस्कृति में विशेष महत्व है। मांगलिक द्रव्यों की सूची में इसको सबसे पहले सम्मिलित किया जाता है। सभी मांगलिक कार्यो में,कथा,हवन,पूजन शादी-ब्याह,अनुष्ठान,दीक्षा,शुभ मुहूर्त आदि में श्रीफल की महत्ता मानी जाती है।यह देखने में ऊपर से शुष्क एवं कठोर होता है परन्तु भीतर से एकदम मधुर होता है। इसकी कठोरता हमें कर्तव्यपरायणता के गुण सिखाती है। श्रीफल की तुलना पिता के प्यार से भी की गयी है,पिता भी ऊपर से कठोर एवं शुष्क होता है परंतु भीतर से कोमल एवं मधुर होता है।जीवन मे मधुरता की रक्षा कठोरता से ही होती है।अतः मनुष्य को सहज एवं मधुर होने के साथ-साथ कठोर एवं संयमित होना चाहिए।
उक्त विचार स्थानीय जैन उपाश्रय में विराजित साध्वी परम् पूज्य सौम्य यशा श्रीजी म.सा.ने एक विशेष व्याख्यान में श्रीफल का सारांश बताते हुए व्यक्त किये। आपने आगे बताया कि सच्चा श्रावक वही बनता है जिसमें श्रीफल के गुणों का समावेश हो। श्रीफल के पानी मे बिना कुछ करे मलाई बनती है,फिर वो मजबूत होकर मीठी चटक बनता है और अंत में सूखकर खोपरे में तब्दील हो जाता है। बीमारी में ताकत देने के लिए काम आता है। परमात्मा की भक्ति से लेकर श्मशान तक श्रीफल साथ आता है। हम श्रीफल को पत्थर से चोट मारते है और बदले में वो हमें मीठी चटक प्रदान करता है। कुलमिलाकर ये फल हमें अनेक सद्गुणो की सीख प्रदान करता है।
प्रवचन में पाट पर पूज्य अर्पिता श्रीजी, पूज्य समर्पिता श्रीजी भी विराजित थी। आपश्री ने भी श्रीफल से जुड़े कई रोचक तथ्यों से श्रद्धालुओं को अवगत कराया।
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