उम्मेदपुरा में दूसरों की उम्मीद बन रही है हसीना बानो,
महिला आजीविका समूह से जुड़कर महिलाएं हो रही आत्मनिर्भर,
नीमच 25 फरवरी 2024, एक कमरे का मकान जिसमें पांच लोग रहते हैं। परंतु वह छोटा सा घर 15 परिवारों के भरण पोषण में अपने महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। यह मकान जावद नगर से तीन किलोमीटर दूरी पर बसे गांव उम्मेदपुरा के हसीना बी का है, जो गरीबी के दंश से उबरने के प्रयास कर रही है। साथ ही अपने आजीविका समूह से जुड़ी दूसरी बहनों को भी अपने साथ रोजगार के अवसर मुहैया करवा रही हैं। यह संभव हो पा रहा है, मध्यप्रदेश डे.राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के द्वारा गठित दीवाना सरकार महिला आजीविका समूह के सहयोग से।
हसीना बी कहती है, कि उन्होने रोजगार को बहुत ही छोटे पैमाने पर शुरू किया था, जिससे बमुश्किल परिवार के भरण पोषण की जुगत हो जाती थी, परंतु अब समूह गठन के बाद उसकी वित्तीय आवश्यकता की पूर्ति समूह के माध्यम से हो रही है। समूह से अभी तक उसने एक लाख 60 हजार रूपये का ऋण लेकर समय पर उसकी अदायगी कर अपने काम को बढ़ावा दिया है।
हाल ही में इस समूह को भारतीय स्टेट बैंक द्वारा 3 लाख रूपये की सीसीएल राशि दी गई है। जिसका उपयोग समूह के सदस्यो ने अपने आजीविका संबंधी गतिविधियों को बढ़ावा देने में किया हैं। कलेक्टर श्री दिनेश जैन के निर्देशन में समूह को मिशन की ओर से चक्रीय एवं सामुदायिक निवेश राशि के रूप एक लाख रूपये दिलवाने के साथ ही एसबीआई बैंक जावद से संयोजन कर सीसीएल द्वारा अभी तक 4.50 लाख रुपए की सहायता राशि उपलब्ध करवाई जा चुकी हैं ।
समूह व्दारा संचालित कलेवा निर्माण की गतिविधि बनी आय का जरिया
कलेवा जिसे आम बोलचाल की भाषा में लच्छा भी कहा जाता है उसका उपयोग हर समाज के व्यक्तियो द्वारा विभिन्न अवसरों पर किया जाता है। इसके लिए उपयोग में लाऐ जाने वाले कच्चे सूत को मुंबई मिल से ट्रांसपोर्ट के माध्यम से गांव तक बुलवाया जाता है, जहां पर सूत को अलग.अलग करने का काम समूह की दूसरी महिलाओं द्वारा किया जाता है उसके बदले में हसीनाबी द्वारा उनके काम के आधार पर उनका भुगतान करती है। जिसमें समूह से जुड़ी 15 महिलाएं प्रतिदिन 100 से 150 रूपये की आय अर्जित कर लेती है। कच्चे सूत के बंडलों को अलग-अलग करने के बाद उसको बांधकर उसकी रंगाई का कार्य किया जाता है। जो कि बडी मेहनत का कार्य होता है जिसमें काफी सावधानियां रखना पडती है।
निर्माण की प्रक्रिया के बाद उसको सूखाने का काम किया जाता है। छोटे.छोटे टुकड़ों में काटकर आकार के रूप में बंडल तैयार किए थे। एक किलो की पैकिंग में उसको पैक कर अजमेर, पाली, दिल्ली, इंदौर, नीमच आदि बडे शहरों के व्यापारियों को उनकी मांग के अनुसार भिजवा दिया जाता है। डिजिटल भुगतान की प्रक्रिया भी अपनाई जाती है।
एक बार में 10 से 20 किवंटल कच्चा सूत मुंबई से बुलवाया जाता है । नीमच, पाली, उदयपुर आदि स्थानों से रंग खरीदे जाते हैं जो एक से ढाई हजार रुपए किलो की दर से बाजार में उपलब्ध होते हैं। लाल, हरा और पीला रंग इसमें उपयोग किया जाता है। कलेवा निर्माण की प्रक्रिया पूरी होती है, जिसमें प्रति किलो करीब 50 से 60 रूपये प्रति किलो के मान से मुनाफा होता है।
इस तरह हंसीना बी हर माह करीब दस से पन्द्रह हजार रूपये महीना कमा लेती है और उनके साथ जुड़े हुए परिवार की भी मासिक आय करीब 6 से 7 हजार रुपए हो जाती है । इस प्रकार मिशन से जुड़कर महिलाएं आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त हो रही है ।
जिला पंचायत सीईओ श्री गुरूप्रसाद कहते है, कि ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा गठित महिला समूह के सदस्यो के परम्परागत ज्ञान, कौशल एवं तकनीकी को संरक्षित कर उनके आजीविका के विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए बेहतर प्रयास किये जा रहे हैं।
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