शहीदों के लिये शहीद नहीं अमर हुतात्मा और शाही के स्थान पर दिव्य-भव्य शब्दों का प्रयोग होना चाहिये- गुरूजी भीमाशंकरजी धारियाखेड़ी
मन्दसौर। कुमावत धर्मशाला नरसिंहपुरा में आयोजित सप्त दिवसीय संगीतमय भागवत कथा के चतुर्थ दिवस कथा प्रसंग के संदर्भ में हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी को महत्व देने के उद्देश्य से आपने कहा हमें बोलचाल की भाषा में जहां तक संभव हो हर हालत में हमारी मातृ-राष्ट्र भाषा हिन्दी के ही शब्दों का ही प्रयोग करना चाहिये। जैसे आई लव इंडिया के स्थान पर मैं हिंदुस्तान से प्यार करता हूॅ। आई लव मंदसौर के स्थान पर मैं मंदसौर से प्यार करता हूॅ। फोन पर हाय-हैलो नहीं बोलते हुए ऊँ जय श्री कृष्णा, जय श्री राम, जय शिव जो भी आपका इष्ट हो उसका नाम उच्चारण करना चाहिये।
देश पर प्राणों को न्यौछावर करने वाले देश भक्तिों को शहीद कहकर सम्मान करते है जो ठीक नहीं है। देश पर प्राण न्योछावर करने वालों को शहीद नहीं कहकर अमर हुतात्मा-वीर गति को प्राप्त कहना चाहिए। इसी प्रकार धार्मिक शोभायात्राओं को हम शाही पालकी-शाही सवारी आदि उर्दू शब्दों का प्रयोग करते है। इसके स्थान पर दिव्य-भव्य-सवारी/पालकी जैसे हिन्दी भाषा का ही प्रयोग करना चाहिये।
250 वर्षों तक देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों के जाने के बाद उनकी जूठन अंग्रेजी भाषा को ढोते रहना और आक्रान्ता मुगलों के चले जाने के बाद उर्दू भाषा के शब्दों का प्रयोग करना उचित प्रतीत नहीं होता।