अरनोद में उडाए आग के गुब्बारे! विशेष प्रकार से उडाए जाते हैं गुब्बारे, देखने के लिए लगा लोगों का जमावड़ा, दिवाली के दूसरे दिन हर साल होता है आयोजन, अरनोद कस्बे में दीपावली के दूसरे दिन आग के गुब्बारे उडाए जाते हैं! यह गुब्बारे हाइड्रोजन गेस से नहीं, आग की लपटों से ऊपर हवा में उड़ते है. जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं, जैसे ही गुबारा ऊपर उठता है, बच्चे तालियाँ बजाकर, शोर मचाकर इसका स्वागत करते हैं… गुब्बारा रंग-बिरंगे पतले कागज़ का बना होता है…इसके नीचे घास-फूस से आग लगाई जाती है और फिर उस पर तेल से भीगा कपड़ा रखा जाता है…आग से निकलता धुँआ जब गुबारे में अच्छी तरह भर जाता है, तो गुब्बारा ऊपर उठता है… आग से धुंआ निकलता रहता है और देखते ही देखते गुब्बारा बहुत ऊपर जाकर आँखों से ओझल हो जाता है… अरनोद में प्रति वर्ष दीपावली के दूसरे दिन यह आयोजन किया जाता है. कस्बे के एक खुले मैदान में आतिशबाजी के साथ आसमान में गुब्बारा उड़ाते हैं,
बांस से बनी पतली किमची को मोड़ कर एक गोलाई बनाई जाती है तथा रंगीन पतंग के कागज को चिपका कर उस गोलाई से चिपका दिया जाता है. उपर से उसको गोलाई में बांध दिया जाता है और गोलाई को दो पतले तारों से बांध दिया जाता है. ऐसे तो यह गुब्बारा बनता है. फिर इसमें घास पुस एकत्रित करके आग जलाई जाती है… और उसके ऊपर दो चार लोगों द्वारा गुब्बारे को कुछ ऊंचाई पर पकड़ लिया जाता है. आग से निकलने वाली कार्बनडाई आक्साईड गैस को गुब्बारे में भरी जाती है. गैस गुब्बारे में भर जाती है तो एक कपड़े को मीठा खाने के तेल में भीगो कर गुब्बारे की गौलाई पर लगे तारों के बीच में लटका कर उसमें आग लगा दी जाती है. जिससे गुब्बारे में कपडें में लगी आग से कार्बनडाई आक्साईड गैस बनती रहती है और गुब्बारे में भरती रहती है. जिससे गुब्बारा ऊंचाई तक उड़ पाता है.
इस प्रकार एक-एक कर पांच गुब्बारे बनाकर उडाए जाते है. इसे देखने के लिए प्रत्येक समाज व वर्ग के बच्चे पुरूष महिलाएं सभी एकत्रित होते है और नव वर्ष की बधाईयां देते है.
और अरनोद में भी यह परंपरा तब से चली आ रही है जब एरोप्लेन का आविष्कार नहीं हुआ था. तब यही मनोरंजन के साधन थे
अर्पित जोशी रिपोर्ट