वासना पर विजयी पाना सबसे बड़ी तपस्या है–सौम्ययशा श्रीजी
जैन संगीतकार करनपुरिया ने स्तवनों से बांधा समा
मनासा। आंखों में राग-द्वेष नही वीतराग हो।संसार को खूब देख लिया अब आत्मा को देखने का अवसर आया है ,अंतर्मन के चक्षुओं को खोलने का मौका आया है। पर्वराज पर्युषण आया है। पर्युषण का मतलब बहुत नजदीक से अपनी आत्मा का अवलोकन करना है,हमारे मन के अंदर के विकारों का शोधन करना है। जैन धर्म में तप का बड़ा महत्व है परंतु वासनाओं पर विजयी पाना ही सबसे बड़ा तप है। पाप करके भी पाप को नही कबूलना वासना है एवं जान बूझकर बोला गया झूठ भी एक प्रकार की वासना ही है।
यह विचार चातुर्मास हेतु विराजित परम् पूज्य सौम्ययशा श्रीजी मसा.ने स्थानिय चिंतामणि पार्श्वनाथ मन्दिर स्थित उपाश्रय में व्यक्त किये। परम् पूज्य अर्पिता श्रीजी ने मसा.ने कहा कि देव,गुरु और धर्म को कभी भी नही ठगना चाहिए, हमें चिंतन करना है कि हमने किसको-किसको ठगा,धोका दिया औरआत्मा दुखाई। इन सब दोषों को धोने का समय आ गया है। पर्युषण पर्व श्रावक को श्रावक बनाने आया है। परमात्मा की वाणी की प्रभावना बंट रही है ये प्रभावना भाग्यशालियों को ही मिलती है।आप सब पुण्यवान है जो इसे प्राप्त कर रहे हो।
व्यख्यान में प्रतापगढ़ राजस्थान से प्रसिद्ध जैन संगीतकार एवं आनन्द जी कल्याण जी की पेड़ी के प्रदेश सचिव श्री राजेन्द्र करनपुरिया ने सुमधुर स्तवनों को गाकर समा बांध दिया। प्रतापगढ़ श्रीसंघ से श्री पारसमल जी जैन वकील साहब, श्री अशोक भाई कंकरेचा, बाजना से श्री अशोक भाई वालरेचा एवं भवानीमण्डी राजस्थान से भी समाजजन उपस्थित थे। अतिथियों का कुमकुम तिलक माला , श्रीफल एवं अंगवस्त्र भेंट कर बहुमान मनासा श्रीसंघ के अध्यक्ष श्री प्रकाश हिंगड़,श्री सूरजमल मानावत,श्री अनिल यति,श्री पदम् कुमार जैन,श्री विजय पामेचा एवं चातुर्मास समिति के अध्यक्ष श्री प्रवीण मानावत ने किया।
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