सिंगोली:- भारतीय संस्कृति में दिगम्बर जैन श्रमण परम्परा का सर्वोच्च स्थान है मुनिश्री, नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 18 नवंबर शनिवार को प्रातः काल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में दिगम्बर जैन श्रमण परम्परा का सर्वोच्च स्थान है। दिगम्बर जैन श्रमण अहिंसा धर्म की रक्षा के लिए प्रत्येक क्षण सावधानी पूर्वक तत्पर रहते हैं। उठने, बैठने, वस्तुओं को उठाने रखने में जीवों की विराधना न हो जाए, इसका ध्यान रखते हैं। अहिंसा धर्म के पालन करने के लिए वे अपने हाथों में मोर के पंख से बनी पीच्छिका रखते हैं। मोर के पंख से बनी ही पीच्छिका रखने के पाँच कारण है। मोर के पंख बहुत कोमल होते है यदि वह मनुष्यों की आँखों में भी चला जाए, तो बाधा नहीं होती हैं। वजन में हलके होते है। मोर पंख पसने और धूल मिट्टी को ग्रहण नहीं करते हैं। देखने में सुन्दर होते हैं? तथा मोर इन्हें स्वतः जब छोड़ता है, तब इन्हें प्रयोग में लाते है। पीच्छिका परिवर्तन करने को दो कारण है। पहला पंखों की कोमलता उपयोग करते हुए कम हो जाना और दूसरा कारण गृहस्थों को संयम के मार्ग पर आगे बढाने की प्रेरणा प्रदान करना। दिगम्बर जैन श्रमण से वर्ष में एक बार इस संयम के उपकरण का परिवर्तन करते हैं। यह संयमोपकरण अहिंसा का प्रतीक है और जिनेन्द्र भगवान के रूप का चिन्ह है। इसे लेने होते हैं। देने वाले पुण्यशाली जीव ही होते है वही 19 नवंबर रविवार को भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह होने जा रहा है मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज को नवीन पिच्छिका समाजजनों द्वारा प्रदान कि जावेगी वही मुनिश्री के सानिध्य में प्रातः काल 7 बजे अभिषेक, शान्तिधारा 8 बजे मुनिद्वय के मंगल प्रवचन 9:30 बजे आहरचर्या दोपहर 1:15 बजे चित्रानावरण,दीप प्रज्जलन, पाद प्रक्षालन, एवं शास्त्रदान 1 :25 बजे मुख्य चातुर्मास कलश पुण्यार्जक परिवार का सम्मान,कलश समर्पण दोपहर 2:15 भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह एवं मुनिद्वय के मंगल आशीष वचन होगे वही इस भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह में अधिक से अधिक संख्या में पधारने हेतु निवेदन किया है
महेंद्र सिंह राठौड़ की रिपोर्ट
भारतीय संस्कृति में दिगम्बर जैन श्रमण परम्परा का सर्वोच्च स्थान है मुनिश्री
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