क्रोध और अभिमान व्यक्ति के सबसे बडे दुश्मन – स्वामी आनन्दस्वरूपानंदजी सरस्वती
मन्दसौर। श्री केशव सत्संग भवन खानपुरा मंदसौर पर दिव्य चातुर्मास पूज्यपाद 1008 स्वामी आनन्दस्वरूपानंदजी सरस्वती ऋषिकेश के सानिध्य में प्रारंभ हो चुका है। स्वामी जी द्वारा प्रतिदिन प्रात: 8.30 से 10 बजे तक श्रीमद् भागवद् महापुराण के एकादश स्कन्द का का वाचन किया जा रहा है।
गुरूवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए स्वामी श्री आनन्दस्वरूपानंदजी ने कहा कि क्रोध और अभिमान व्यक्ति के सबसे बडे दुश्मन होते है। व्यक्ति को अभिमान नहीं करना चाहिए, शास्त्रों में भी यही लिखा है लेकिन फिर भी सबकुछ जानते हुए भी व्यक्ति जाति, धन, सम्पत्ति, सत्ता, पद, प्रतिष्ठा आदि का अभिमान करता है जबकि यह सबकुछ उसका होता ही नहीं है फिर भी व्यक्ति अभिमान में डूबा रहता है। व्यक्ति यह सोचता है कि मुझ से श्रेष्ठ कोई ही नहीं और इसी में वह ईश्वर से दूर होता चला जाता है।
स्वामी जी ने बताया कि बाली ने रावण को युद्ध में हराया तो वह समझ बैठा कि वह दुनिया में सबसे बलशाली है क्योंकि रावण तो त्रिपुण्ड विजय था इसी अभिमान में बाली ने एक बार हनुमान जी को चुनौति देदी और बाली हनुमान जी के सामने क्षणिक भर भी टिक नहीं सका। अर्थात हमें कभी किसी का घमंड अभिमान नहीं करना चाहिए यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि मैं ही श्रेष्ठ हूं।
त्याग तपस्या से सहनशक्ति बढती है
स्वामी जी ने धर्मसभा में बताया कि त्याग और तपस्या से सहनशक्ति बढती है इसलिए हमें त्याग और तपस्या करना चाहिए। मन को शांत और स्थिर रखकर इसे प्र्रभु भक्ति में लगाकर ईश्वर की लिलाओं का चिंतन करना चाहिए। आपने बताया कि ईश्वर का चिंतन करने से मन के विकार दूर होते है और मन शुद्ध होता है।
धर्मसभा में जगदीशचन्द्र सेठिया, कारूलाल सोनी, जय प्रकाश गर्ग, घनश्याम सोनी, रविन्द्र पाण्डेय, राजेश देवडा, विनोद कुमार गुप्ता, मदनलाल यति, जगदीश गर्ग,आर सी पंवार, इंजी आर सी पाण्डे, पं शिवनारायण शर्मा, राजेश तिवारी, प्रवीण देवडा सहित बडी संख्या में महिलाएं पुरूष उपस्थित थे।
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