महा व्रत धारी दादा गुरु की पैदल नर्मदा परिक्रमा का द्वितीय चरण आज ओंकारेश्वर से प्रारंभ। तीर्थ नगरी ओमकारेश्वर में नर्मदा मिशन के संस्थापक श्री दादा गुरु मां नर्मदा सहित जीवन दाहिनी नदियों के संरक्षण शुद्धिकरण प्रकृति संवर्धन संरक्षण एवं पीड़ित मानव की सेवा के लिए निरंतर 15 वर्षों से क्रियाशील है वही तीन वर्षों से प्रकृति की सबसे कठिन निराहार महा व्रत साधना कर रहे हैं। दादा गुरु यह व्रत मां नर्मदा का केवल जल पीकर कर रहे हैं जो विज्ञान के लिए शोध का विषय है।
दादा गुरु कहते हैं कि प्रकृति ने हमें जल अमृत के सामान दिया है इसका संरक्षण अति आवश्यक है। यदि प्रकृति केंद्रित जीवन जिया जाए तो प्रकृति से प्राप्त यह जल आहार स्वरूप हो जाएगा।

जिस प्रकार शिशु 6 माह तक अपने मां के आंचल पर आश्रित रहता है और उसे किसी आहार की जरूरत नहीं रहती और वह हष्ट पुष्ट रहता है
उसी प्रकार दादा गुरु भी मां नर्मदा का अमृतमय जल चरण करते हैं।
नर्मदा अक्षय है मां नर्मदा का जल मैं समर्थता है कि 3 वर्षों से मेरा हर रहने के बाद भी दादा गुरु के रोम रोम का छय नहीं हो रहा। नर्मदा का जल जीवन शक्ति को प्रत्यक्ष उदाहरण श्री दादा गुरु है।
नर्मदा सेवा परिक्रमा ओंकारेश्वर से प्रारंभ की थी।
युग में प्रकृति संरक्षण है सबसे बड़ा धर्म है एवं सेवा ही यज्ञ है। इसी उद्देश्य को धारण कर अखंड निराहार मां नर्मदा सेवा परिक्रमा सुबह 9:00 बजे ओंकारेश्वर के गोमुख घाट से मां नर्मदा का आरती पूजन कर प्रारंभ किया।
दादा गुरु के साथ यात्रा में एनआरआई भक्त भी शामिल है।
यात्रा का पहला पड़ाव मोर टका के खेड़ी घाट मैं रात्रि विश्राम किया जाएगा।
ओंकारेश्वर मांधाता से आकाश शुक्ला की रिपोर्ट
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