द्वितीय दिवस की भागवत कथा का समापन

द्वितीय दिवस की भागवत कथा का समापन

मंदसौर

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द्वितीय दिवस की भागवत कथा का समापन

हमारे शरीर को परमात्मा ने बनाया है, इसलिए परमात्मा ही चलाता है – मालवा स्वामी श्री शास्त्री

मंदसौर। शहर के जीवागंज स्थित जगदीश मंदिर में भागवत विचार संस्थान द्वारा संगीतमय श्रीमद भागवत कथा 21 दिसंबर से 27 दिसम्बर द्वितीय दिवस पं. श्री कृष्ण वल्लभ शास्त्री कथा में उदाहरण देते हुए बताया कि जिस तरह से हमारे शरीर में पंच तत्वों में ईश्वर बैठकर संचालन कर रहा है सुन रहा है देख रहा है और क्रिया कर रहा है इस तरह से आपके वाहन मंें पांच तत्व मारुति और ट्रैक्टर में विराजमान है लोहे के वाहन मे खनिज तत्व, हॉर्न आकाश तत्व, मिट्टी भूमि तत्व जैसे कई पांच तत्व विराजमान है। लेकिन उसमें चलाने वाली आत्मा नहीं है जो ड्राइवर होता है वह आत्मा के रूप में उसे चलाता है। हम देवलोक में यह उदाहरण विष्णु के रूप में ले तो सबसे पहले जब ड्राइवर स्टेरिंग घुमाता है तो चक्र और  हॉर्न   बजाता है तो शंख और गियर लगाता है तो गधा चलाने के समान ऐसे पांच तत्वों को मनुष्य ने बनाया और इसें मनुष्य ही चलाता है, लेकिन हमारे शरीर को परमात्मा ने बनाया है इसलिए परमात्मा चलाता है। भागवत के अर्थ का वर्णन करते हुए बताया भ शब्द से भूमि, अ से आ की मात्रा अग्नि, ग से गगन,व से वायु इन पंच तत्वों से मिलकर बनी है भागवत। अब कोई भी कार्यक्रम की शुरुआत शंख बजा कर ही होती है। द्वितीय दिवस की कथा के अनुसार पंडित शास्त्री ने वर्णन मे बताया कि कथा राजा सुखदेव ने परीक्षित को कथा सुनायी, इस भागवत कथा को जितनी बार सुनोगे भगवान हरि जो कि भगवान हमारे हृदय में आकर विराजमान हो जाते हैं, कई जन्मों के पुण्य जब फलिफुत होते थे, तब हमें भागवत कथा सुनने का लाभ अर्जित होता है। आगे वर्णन के अनुसार बताया कि भगवान श्रीकृष्ण सभी लीलाएं संपन्न करने के बाद द्वारका में कहां की मे इस जगह जिस कार्य के लिए 100 वर्ष के लिए आया था, पर यहां पर मैं 125 वर्ष रहुगा। भगवान श्रीकृष्ण जब जाने लगे तब उनके परम मित्र उद्धव सखा सामने खड़े हुए मिले। उद्धव कहते है भगवान आप तो उस लोक में चले जाओगे और राधाजी से मिलन हो जाएगा लेकिन मैं इस धरती पर अकेला रह जाऊंगा। तब भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि मैं तो जा रहा हूं लेकिन मेरी उसे शक्ति को उस भागवत में छोड़कर जा रहा हूं जब मेरी तुम्हें कमी महसूस हो तो उस भागवत कथा का अध्ययन कर लेना उसे सुना देना वह मेरा ही रूप होगा। कलयुग में किसी को भगवान के दर्शन नहीं होते। उपाध्याय परिवार द्वारा आग्रह किया गया कि श्रीकृष्ण जन्मोत्सव व कथा को श्रवण करने हेतु अधिक से अधिक संख्या में पधारकर धर्म लाभ लेवे।

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