देवों के देव महादेव का विचित्र महोत्सव है महाशिवरात्रि -बंशीलाल टांक
शादी-विवाह का प्रमुख आकर्षण होता है दूल्हा-दूल्हन। जब किसी दूल्हा की शादी होती है तो वह किस प्रकार अधिक से अधिक सुन्दर आकर्षक दिखे इसके लिये परिवार वाले तो उसके समस्त प्रबंध करते ही है-विशेषकर परिवार में मातृशक्ति में जो भी उपलब्ध हो दूल्हे के सजाने-संवारने-श्रृंगार करने में जुट जाती है परन्तु स्वयं दूल्हे राजा कोई कमी कसर नहीं रहने देते और इसके लिये चौथे युग कलियुग के वर्तमान में ब्यूटी पार्लर प्रमुख हो गये है।
आज हम बात कर रहे है देवों में प्रमुख देव महादेव भगवान भोले शंकर के विवाह की।
हिन्दू सनातन धर्म में प्रथम देव है, सृष्टि रचयिता ब्रह्मा, दूसरे पालनकर्ता विष्णु और तीसरे संहारकर्ता शंकर। इन तीनों देवों में केवल भगवान विष्णु के द्वारा धरती पर विभिन्न 24 अवतारों के रूप में अवतीर्ण होने कही कथाएं हिन्दू ग्रंथों में वर्णित है। ब्रह्मा का कहीं मनुष्य रूप में अथवा अन्य रूपों में अवतार हुआ हो कहीं उल्लेख नहीं है इसी प्रकार भगवान शंकर ने कहीं अवतार लिया हो उल्लेख नहीं है। वैसे हनुमानजी को शंकर का स्वरूप माना गया है।
भगवान विष्णु का सतयुग में वराह, हंस, मीन(मछली) और नृसिंह आदि पशु-पक्षियों के रूप में धरती पर प्रकट होने के प्रसंग है परन्तु जहां तक मानव रूप में विवाह का प्रसंग है वह त्रेता युग में राम और द्वापर युग में कृष्ण का विवाह रचने का प्रसंग है। भगवान राम ने केवल जनक राजा की बेटी सीता से विवाह किया परन्तु कृष्ण की एक नहीं सौलह हजार एक सौ आठ पत्नीयां थी जिनमें सौलह हजार एक सौ भोमासुर की कैद से छुड़ाई गई कन्यायें थी जिनको भोमासुर की कैद में रहने से समाज द्वारा स्वीकार नहीं करने के भय से बचाने के लिये कृष्ण ने अपनाया था। रूकमणी-सत्यभामा आदि 8 पटरानियों का विधिवत शादी करके ग्रहण किया था।
भगवान राम और कृष्ण के विवाह बड़ी धूमधाम से हुए उन्हें खूब अच्छी तरह सजाया-संवारा गया परन्तु भगवान शंकर को दूल्हे के रूप में जिस प्रकार श्रृंगारित किया उस समय ब्यूटी पार्लर तो था नहीं सुगंधित द्रव्यों पर नजर डाले तो चोवा-चन्दर-अरगजा और हल्दी उबटन के स्थान पर अपने संगी साथी भूत प्रेतों से मरे मुरदे के जलाने पर शमशान की भभूत (राख) का उबटन लगा लिया। मस्तक पर सुन्दर मुकुट के स्थान पर चन्द्रमा वह भी पूर्णिमा का चांदनी बिखेरता पूरा क्या आधा भी नहीं-पाव चौथाई द्वितीया का टेढ़ा-चन्द्रमा, गले में सुन्दर, सुगन्धित फूलो के हार के स्थान पर फूंफकार मारता जहरीला सांप को हार बना लिया। बर्फीले कैलाश पर्वत पर किसी बड़े फेमस (प्रसिद्ध) वस्त्राभूषण का मेगा स्टोर अथवा किराये से मिलने वाले वस्त्राभूषण-अलंकार-श्रृंगार जो नहीं थे, रूद्राक्ष की कमी तो हिमालय में है नहीं खूब रूद्राक्ष की मालाओं का जटाजूट, सुन्दर फेन्सी ड्रेस की जगह मृगछालाकमर पर लपेट ली। दूल्हे के हाथ में कटार होनी चाहिए यहां छोटी सी कटार/तलवार का क्या काम भारी भरकम त्रिशूल जो था। वहां दूल्हें के लिये सुंदर अश्व कहां से लाते अपने नन्दी (वृषभ-बैल) की पीठ पर चढ़ गये। अब पीठ पर क्या पकड़ के बैठे झट से नन्दी के मुख की तरफ से पीठ घूमाई और नन्दी की पूंछ पकड़ कर बैठे गये। रंग रंगीले सुंदर पोशाक सजे सजाये बराती कहां से लाये . . .
भूत प्रेतों को आमंत्रण भेज दिया। निमंत्रण भी केवल भारत के भूतों को नहीं, अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, जापान आदि सम्पूर्ण संसार के भूत-प्रेत आ गये। किसी के धड़ है तो सिर नहीं, सिर है तो हाथ पैरों का ठिकाना नहीं, कहीं हाथी की तरह बेडोल तो कहीं बिना चमड़ी के एक-एक अस्थि गिन लो, ऐसे विचित्र दूल्हेराजा, विचित्र बारात के साथ ‘होके नन्दी पर सवार-शिवजी चले ब्याहने’ अपने देश की भाषा में नाचते-गाते कूदते-फांदते बारातियों के साथ शिवजी जब हिमालय पुत्री पार्वती को ब्याहने हिमालय के दरवाजे पर तोरण मारने पहुंचे उसके पहले देवता जो आदिदेव महादेव की बारात में पृथक से खूब बन ठन कर आये थे शिवजी से पहले पहुंच गये। खूब अच्छी प्रकार उनका सम्मान हुआ। सुंदर देवताओं को देखकर सब बहुत ही प्रसन्न हुए कि बाराती जब इतने सुंदर है तो दूल्हा कितना संुदर होगा। पार्वती की माता मैना बहुत ही सुंदर आरती का थाल सजाकर दरवाजे पर खड़ी थी परन्तु जैसे ही दूल्हे को देखा पूजा का थाल हाथ से गिर गया-मूर्छीत होकर माता नीचे गिर पड़ती इसके पहले साथ ही कुछ साहसी सखियों ने सम्हाल कर अन्दर भवन में ले गई और कहा ऐसे अवधूत के साथ अपनी पुत्री का ब्याह नहीं करूंगी। आज की दूल्हन होती तो मॉ को मौका ही नहीं मिलता स्वयं दूल्हन दूल्हे राजा को उल्टे मुंह जिधर से आया था बेरंग लौटा देती परन्तु उसी समय देवर्षि नारद जी ने आकर बात सम्हाली कि पार्वती पूर्व जन्म में सती थी और रावण द्वारा सीता हरण होने पर सीता के विरह में राम को बिलखते देखकर शिवजी के कहने पर भी सति को राम का अवतार होना विश्वास नहीं कि परीक्षा लेने चली गई गई तब अपने इष्ट भगवान पर संदेह करने से शिवजी ने सती का त्यागकर समाधी में चले गये परन्तु ताड़कासुर दैत्य का विनाश केवल शिव पुत्र के हाथों मरण होना पूर्व से तय होने से देवताओं ने कामदेव से शिवजी की समाधी तुड़वाकर दूसरे जन्म में हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी पार्वती से शुभ विवाह कराया जिसे आज हम केवल साधारण शिवरात्रि के रूप में नहीं बल्कि समस्त रात्रियों में महाशिवरात्रि के रूप में मनाते आ रहे है।
हर-हर महादेव। बंशीलाल टांक
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